Tuesday, September 10, 2013

कैसे हो हिंदी का उद्धार?

एक सवाल से अपनी बात शुरू करना चाहता हूँ। संवैधानिक रूप से आज भारत की "राष्ट्र-भाषा" क्या है? उत्तर है - कोई भाषा नहीं। आजादी के सड़सठ साल बाद भी हमारे राष्ट्र भारत की राष्ट्रभाषा तक संविधान में  स्पष्ट नहीं है। कितना दुखद है? हाँ खुशी की भी एक बात है कि संवैधानिक रूप से भारत में कोई राष्ट्रभाषा भले ही ना हो लेकिन लगभग सात दशक के सफर के दौरान हिन्दी सम्पर्क भाषा के रूप में पूरे राष्ट्र में विकसित हुई है। यहाँ तक कि दक्षिण के राज्यों में भी अब हिन्दी सहजता से बोली और समझी जाती है।

भाषा जो सम्पर्क की, हिन्दी उसमे मूल।
भाषा बनी न राष्ट्र की, यह दिल्ली की भूल।।

लेकिन फिर सवाल है कि जिस हिन्दी भाषा ने स्वतंत्रता संग्राम के दिनों पूरे देश के लोगों को जोड़ने का काम किया, देशवासियों को अंग्रेज और अंग्रेजियत से मुक्ति दिलाने में जिस भाषा की भूमिका अहम मानी जाती थी और जो व्यावहारिक रूप से आज भी सम्पूर्ण राष्ट्र को सम्पर्क-सूत्र के रूप में बाँधने का काम कर रही है, वही हिन्दी आज इतनी उपेक्षित क्यों? इतनी निरीह क्यों? यकीन नहीं आता तो देश के किसी भी हिस्से में किसी हिन्दी विद्यालय की स्थिति देख लें।

राज काज के काम हित, हिन्दी है स्वीकार।
लेकिन विद्यालय सभी, हिन्दी के बीमार।।

आजादी या सत्ता हस्तांतरण के समय सिर्फ इतना हुआ कि गोरे अंग्रेज के हाथ से सत्ता काले अंग्रेज के हाथ में आ गयी। अंग्रेज तो गए पर अंग्रेजियत बची रही और अंग्रेजी भाषा को उत्तरोत्तर छद्म और प्रत्यक्ष रूप से "राज्याश्रय" मिलने लगा। परिणाम स्वरूप हिन्दी धीरे धीरे उपेक्षित होती रही और अंग्रेजी लगातार पल्लवित - पुष्पित। हिन्दी या अन्य भारतीय भाषाओं को जाननेवाले रोजगारों से वंचित होने लगे और अंग्रेजीदां के लिए रोजगार ही रोजगार। हिन्दी दिवस या अन्य अवसरों पर हिन्दी की महत्ता को हिन्दी में समझाने वाले रहनुमाओं की सन्तान भी अंग्रेजी में प्रवीण होने लगे और ऊँचे पदों पर लगातार काबिज होने लगे।

मंत्री की सन्तान सब, अक्सर पढ़े विदेश।
भारत में भाषण करे, हिन्दी में संदेश।।

सबसे मजेदार बात यह है कि व्याकरण के नियम के हिसाब से भी "व्यक्तिवाचक संज्ञा" के अनुवाद का चलन नहीं है। लेकिन इतने सालों के बाद भी भारत (जो व्यक्तिवाचक संज्ञा है) का अनुवाद "इन्डिया" धड़ल्ले से प्रयोग हो रहा है। शायद दुनिया के किसी भी देश के नाम का अनुवाद नहीं होता है। खैर----

पानी और प्रशासन का बहाव हमेशा ऊपर से नीचे की ओर होता है। हिन्दी तबतक उपेक्षित रहेगी जबतक दिल्ली के शासकवर्ग हिन्दी को सही अर्थों में राज्याश्रय नहीं देंगे, रोजगार के अवसरों में इसकी महत्ता को नहीं स्वीकार करेंगे, हिन्दी विद्यालयों की स्थिति सहित शिक्षकों की बेहतरी का खयाल नहीं रखेंगे तबतक हिन्दी यूँ ही निरन्तर उपेक्षा का शिकार होते रहेगी और यह भी सम्भव है लोग हिन्दी पढ़ना लिखना भी भूल जाय। 

यह स्थिति आज भी देखी जा सकती है। आज आपको अपने आस पास ही कई बच्चे ऐसे मिलेंगे जो हिन्दी बोल तो लेते हैं किसी तरह पर हिन्दी पढ़ नहीं पाते। किसी भी घर में जाएँ तो माता-पिता, अभिभावक अपने बच्चों यह कहते मिलेंगे कि - बेटा जरा "अंकल" को वो "पोएम" सुना दो। माता पिता भी खुश होते हैं कि चलो बच्चों को हिन्दी नहीं आती तो क्या? अंग्रजी तो फर्राटेदार बोलता है ना?

यानि हिन्दी के प्रति सरकारी उपेक्षा के कारण अब अभिभावकगण की दृष्टि में भी हिन्दी उपेक्षित हो रही है। फिर कैसे होगा उद्धार हिन्दी का? यह सवाल आज ज्वलन्त है। हमें भी जागने की जरूरत है और सरकारी तंत्रों को अपनी एकता से जगाने की भी। हम हिन्दुस्तान में रहकर साल में एकबार "हिन्दी पखवारा" मनाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझने लगे। सभी सरकारी संस्थाओं में यह "पुणीत" कार्य साल में एकबार अवश्य होता है।

हमारे राष्ट्र की भाषा बने कब शान से हिन्दी?
हमारी भिन्नता में एकता की जान ये हिन्दी।
मगर सच है सभी बच्चे को अंग्रेजी पढ़ाते हैं,
तो कैसे बन सकेगी देश की पहचान ये हिन्दी।  

और चलते चलते एक बात और - हिन्दी पखवारे के एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि ने संदेश दिया कि - आजकल लोगों की बहुत "बैड हैबीट" हो गयी है कि हिन्दी बोलने में "इंगलिश वर्ड" का "यूज" करते हैं। 

11 comments:

  1. सुंदर सार्थक लेख
    हिंदी भाषा की क्यों अंगरेजी ने बिंदी हटा दी |
    DrKavita Vachaknavee
    14 hours ago near London, England, United Kingdom.
    मेरे मित्र व हिंदीप्रेमी ज़्देन्येक वाग्नेर ( Zdeněk Wagner)) का आज का स्टेटस पढ़ मन दु:खी व लज्जित है। उन्होंने लिखा है -
    "I have just received an answer from an Indian man. I met him a month ago in Istanbul, we talked to each other in Hindi and we both understood because he is from Delhi and Hindi is his mother tongue. I wrote him an email in Hindi and he replied that he can understand English written texts but not Hindi written text and thus he does not know what I have written to him..."
    भारत व भाषा का ऐसा अपमान करने वाले भारतीयों को आप क्या कहना चाहेंगे ? विदेशी मूल के हिन्दी प्रेमियों के सामने सिर शर्म से झुक जाता है।दिल्ली के इन अज्ञात सज्जन के हिन्दी व वाग्नेर के प्रति इस व्यवहार के लिए मैं खेद व्यक्त करती हूँ।
    ध्यातव्य है कि वाग्नेर स्वयं हिन्दी में कविताएँ लिखते हैं और अभी उनकी 21 हिन्दी कविताओं व 21 कविताओं के चेक अनुवाद का संकलन 'अरुणाकाश का रास्ता' प्रकाशित हुआ है जिसका आमुझ विख्यात चेक कवि Martin Petiška ने लिखा है।ह हम भारत वासी |
    क्यों ऐसे बन गये ?

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  2. सुंदर रचना...
    आप की ये रचना आने वाले शुकरवार यानी 13 सितंबर 2013 को नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है... ताकि आप की ये रचना अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
    आप भी इस हलचल में सादर आमंत्रित है... आप इस हलचल में शामिल अन्य रचनाओं पर भी अपनी दृष्टि डालें...इस संदर्भ में आप के सुझावों का स्वागत है...


    आप सब की कविताएं कविता मंच पर आमंत्रित है।
    हम आज भूल रहे हैं अपनी संस्कृति सभ्यता व अपना गौरवमयी इतिहास आप ही लिखिये हमारा अतीत के माध्यम से। ध्यान रहे रचना में किसी धर्म पर कटाक्ष नही होना चाहिये।
    इस के लिये आप को मात्रkuldeepsingpinku@gmail.com पर मिल भेजकर निमंत्रण लिंक प्राप्त करना है।



    मन का मंथन [मेरे विचारों का दर्पण]

    सुंदर रचना...
    आप की ये रचना आने वाले शुकरवार यानी 13 सितंबर 2013 को नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है... ताकि आप की ये रचना अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
    आप भी इस हलचल में सादर आमंत्रित है... आप इस हलचल में शामिल अन्य रचनाओं पर भी अपनी दृष्टि डालें...इस संदर्भ में आप के सुझावों का स्वागत है...


    आप सब की कविताएं कविता मंच पर आमंत्रित है।
    हम आज भूल रहे हैं अपनी संस्कृति सभ्यता व अपना गौरवमयी इतिहास आप ही लिखिये हमारा अतीत के माध्यम से। ध्यान रहे रचना में किसी धर्म पर कटाक्ष नही होना चाहिये।
    इस के लिये आप को मात्रkuldeepsingpinku@gmail.com पर मिल भेजकर निमंत्रण लिंक प्राप्त करना है।



    मन का मंथन [मेरे विचारों का दर्पण]

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" में शामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल {बृहस्पतिवार} 12/09/2013 को क्या बतलाऊँ अपना परिचय - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल - अंकः004 पर लिंक की गयी है ,
    ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें. कृपया आप भी पधारें, सादर ....राजीव कुमार झा

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी
    पोस्ट हिंदी
    ब्लॉगर्स चौपाल
    में शामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल
    {बृहस्पतिवार}
    12/09/2013
    को क्या बतलाऊँ अपना
    परिचय ..... - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल - अंकः004
    पर लिंक की गयी है ,
    ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें. कृपया आप भी पधारें, आपके
    विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें. सादर ....राजीव कुमार झा

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  5. आपकी यह प्रस्तुति 12-09-2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत है
    कृपया पधारें
    धन्यवाद

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  6. गहन विश्लेषण सार्थक प्रस्तुति

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  7. अब इलेक्ट्रनि मीडिया में हिंदी के बिना काम नहीं मिलता है। हिंदी और अंग्रेजी कमसे कम दो भाषाएँ आपको अच्छी आनी चाहिए।विज्ञापन का माया संसार विज्ञापन हिंदी में रचता है बा -कायदा विज्ञापन साहित्य कई मूर्धन्य साहित्यकार (मूढ़ धन्य वास्तव में )लिख रहे हैं।

    लोगों में वराहभगवान् का अंश बढ़ गया है इसीलिए अंग्रेजी पनप रही है। हिन्दुस्तानी रोता हिंदी में है आसमान में उड़ते ही अंग्रेजी बोलने लगता है। अच्छी बात है अब कई परिवारों में अच्छी हिंदी बोलने वाले बच्चों को एक विरल जिन्स समझा जाने लगा है।

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  8. बेह्तरीन अभिव्यक्ति …!!गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें.
    कभी यहाँ भी पधारें।
    सादर मदन

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  9. सार्थक मुद्दे को उठाया है आपने हिंदी पखवाडे के अवसर पर। ये साजिश है सारे बाबू लोगों (आय ए एस, आय पी एस, आय आर एस) की जो हिंदी आज भी राष्ट्रभाषा न बन पाई । इस दिशा में हिंदी ब्लॉगिगं एक सही कदम है।

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