अक्सर लोग कहते हैं कि डरना बुरी बात है और यह भी कहते हैं कि एक व्यवस्थित जिन्दगी के लिए डर का होना भी जरूरी है वरना हम में से अधिकांश लोग स्वेच्छाचारी हो जाएंगे।
दोनों ही स्थितियाँ सच है और इसको स्थापित करने के सबके अपने अपने तर्क भी।
डर - किस बात का? हम सबने जो कुछ (सुख-सुविधा, प्रतिष्ठा आदि) अबतक पाया उसके खो जाने का या भबिष्य की चाहत को ना पाने का?
विद्रूप सामाजिक स्थिति में परिवर्तन लाने की दिशा में जो सबसे बड़ी बाधा है वो यही "डर" है शायद।
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