Monday, November 17, 2014

आसाराम का अफसोस

शाबाश! मेरे भाई रामपाल!  कमाल कर दिखाया आपने! आज पूरा "संत-समाज" को आप पर फक्र है। धन्य हैं आपके भक्तगण जिनकी चट्टानी एकता के आगे पूरी शासन व्यवस्था लाचार दिखी। आपके इस कार्य से अपने पूर्ववर्ती संत भिण्डरावाले की याद आना स्वाभाविक है जिनको सरकारी आततायियों ने आखिर शहीद कर ही दिया। काश! मुझे भी ये "सद्बुद्धि" समय रहते आ गयी होती? मेरे पास क्या "भक्तों" की कोई कमी थी? लेकिन मैं चूक गया जिसका परिणाम आज भी जेल के सीखचों के अन्दर भोग रहा हूँ।

ऐसा क्यों हुआ? आप रामपाल और मैं आसाराम। "राम" तो दोनों के साथ हैं और हम दोनों ने इसी "राम" के सहारे अपने अपने ढंग से धर्म की दुकानदारी की, इसे अपनी मेहनत और लगन से बढ़ाया और चमकाया भी। लेकिन बहुत बड़ा अन्तर ये है मेरे भाई कि मेरे नाम के पीछे "राम" हैं और आपके नाम में बिल्कुल आगे। एक कारण यह भी हो सकता है कि राम को आगे रखकर आप आगे निकल गए और मैं बहुत पीछे रह गया।

दूसरा जो कारण मुझ अल्प-बुद्धि को दिखायी दे रहा कि आपने राम की महान शक्ति को ध्यान में  रखा।  अपने भक्तों को सम्मोहित कर भक्तों द्वारा "शक्ति" का पालन करवाकर अपने नाम "रामपाल" को सार्थक कर दिया और मैं अपने नाम "आसाराम" को सार्थक करते हुए "राम" से "आस" लगाये बैठा रहा और आज "निरर्थक बना हुआ हूँ। ना जाने इस हाल में और कितने दिनों तक रहूँगा। यही मुझसे तकनीकी चूक हुई और इसका अफसोस मुझे मरने तक रहेगा। हाँ रामपाल जी इस निरर्थक बने "आसाराम" को आपसे बहुत "आस" है। आपके सफलता की अशेष शुभकामनाएँ।

3 comments:

  1. आपकी लिखी रचना बुधवार 19 नवम्बर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. विचारणीय लेख भगवान भरोसे |

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  3. अच्छा लेख
    http://savanxxx.blogspot.in

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