Saturday, December 17, 2022

बहुत खतरनाक है भीष्म की खामोशी

द्रोपदी से भी बदतर स्थिति में है भारतीय लोकतंत्र के मंदिर संसद का जिसका चीरहरण बदस्तूर जारी है। द्रोपदी का चीरहरण एक बार हुआ था पर संसद का दशकों से बार बार हो रहा है। द्रोपदी चीरहरण को देखने वाले सिर्फ हस्तिनापुर के राज दरबार के लोग थे पर संसद के चीरहरण को हस्तिनापुर के साथ साथ पूरी दुनिया बार बार देख रही है। भीष्म तब भी खामोश थे और भीष्म आज भी खामोश हैं। इतिहास साक्षी है कि भीष्म की खामोशी महाभारत जैसे विनाशकारी युद्ध को आमंत्रित करती है।

भीष्म कोई खास व्यक्ति नहीं बल्कि वो प्रतीक है शक्ति सम्पन्न संवैधानिक प्रमुख का जिसने शायद पहले की तरह हस्तिनापुर के सिंहासन पर बैठे व्यक्ति की वफादारी का संकल्प ले रखा है। कमोबेश द्वापर जैसी स्थिति आज भी है। अन्तर बस इतना है कि द्वापर में प्रजा चुपके चुपके अपने अपने ढंग से शासकीय कृत्य की चर्चा किया करती थी पर आज प्रजा चीख रही लेकिन उस चीख को आज के बिकाऊ मीडिया के भोंपू से प्रयास पूर्वक दबाया जा रहा है।

प्रजा को खौफ में रखने का चलन शुरू से है। प्रजा कल भी खौफ में थी और आज भी खौफ में ही है। न्यायिक प्रक्रिया में घोर भ्रष्टाचार है, न्यायाधीश तक को "मैनेज" करके मनमाफिक जजमेंट करवाये जाने के कई मामले प्रकाश में आते रहे हैं। फिर भी अगर न्यायालय के खिलाफ किसी ने कुछ कहा तो न्यायिक अवमानना का खतरा। राष्ट्रपति संवैधानिक प्रमुख हैं, उनके खिलाफ बोले तो कई कानूनी मामले के लपेटे में आने का डर। किसी खास राजनीतिक दल या नेता के खिलाफ में अगर आपने आवाज उठायी तो सम्बन्धित दल या नेता के "भक्तगण" आप पर टूट पड़ेंगे और आपकी बोलती बन्द करा देंगे। संसद सदस्यों में से किसी की आत्मा अगर गलती से भी जग गयी और वह अपने दल या नेता के खिलाफ जुबान खोलने की हिम्मत की तो दल से निकाले जाने का खतरा था संसद की सदस्यता से हाथ धोने का डर के कारण उनकी आत्मा पुनः सो जाती है। 

अर्थात प्रजा को खौफ से खामोश कराया जाता है और भीष्म? वो तो हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठे व्यक्ति की वफादारी के लिए संकल्पित है। अतः भीष्म खामोश रहेंगे ही चाहे फिर से एकबार महाभारत ही क्यों ना हो जाए।

राष्ट्रगान आए ना जिनको वो संसद के पहरेदार 
भारतवासी अब तो चेतो लोकतंत्र सचमुच बीमार 
                        
सादर 
श्यामल सुमन

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