ऐसे करोड़ों सम्वेदनाओं से भरे संदेश देश / विदेश से आ रहे हैं, आएंगे भी, सरकार की कड़ी कार्रवाई की चेतावनी भरे वक्तव्य भी आएँगे। फिर अगले दिन अलग-अलग मुद्दों पर चर्चे और बहस। फिर कौन इस ओर मुड़ के देखता है? यदि देश के नागरिक / पत्रकार इस ओर पलट के देखते तो सालों पहले घटित पुलवामा जैसी अनेक दुर्दांत घटनाओं का सच आज तक आ गया होता देश के सामने।
सरकारी दावों में नोट-बंदी से आतंकवाद की कमर तोड़ने का आश्वासन मिला था और धारा 370 में परिवर्तन के बाद भी कुछ इसी प्रकार के सरकारी दावे देश की जनता के सामने आए पर इसकी परिणति पहलगाम जैसी हृदय विदारक घटना के रूप में सामने आयी। लेकिन इस सवाल को मजबूती से उठाने वाले सजग नागरिकों / पत्रकारों को बहुत कुछ भुगतने पड़ सकते हैं क्योंकि हाल के कुछ सालों इसी तरह का चलन स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा है।
कुछ संगठनों द्वारा धर्म के नाम पर अनवरत जो नफरत की आग लगाई जा रही है उससे देश में क्या कभी सौहार्द का वातावरण पनपेगा? सोचिएगा मेरे मित्रों / देशवासियों! आग का खेल बहुत खतरनाक होता है और कीचड़ से कीचड़ को साफ करने की हर कोशिशों पर पूर्ण विराम लगना आवश्यक है वरना देश का अत्यधिक नुकसान हो जाएगा।
सभी हताहतों के प्रति विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कबीर के निम्न दोहा के साथ आज अंत करूँ कि -
करै बुराई सुख चहै, कैसे पावे कोय।
रोपै पेड़ बबूल का, आम कहां ते होय।।
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