Friday, June 10, 2011

जगत-गुरु इन्डिया

बचपन से ही सुनते पढ़ते आया हूँ कि भारत "जगत-गुरु" है। सभ्यता, संसकृति, ज्ञान, विज्ञान के प्रकाश वितरणके साथ साथ गणित के शून्य से लेकर नौ तक के अंकों का जन्मदाता भारत ही तो है। कमोवेश यही स्थिति आजकल भी है। हमें आज भी "जगत-गुरु" होने का गौरव है। मेरी बातों से आप सहमत हो सकते हैं, असहमत हो सकते हैं, आश्चर्यचकित हो सकते हैं। आपका असहमत और आश्चर्यचकित होना एकदम लाजिमी है, क्योंकि आप देख रहे हैं कि विगत दशकों में पश्चिमी देशों, खासकर अमेरिका के पीछे पीछे लगातार चलने वाला भारत, भला जगत-गुरु कैसे हो सकता है? जबकि हमारे अन्दरूनी फैसले भी "व्हाइट हाऊस" के फैसले से निरन्तर प्रभावित हो रहे हैं। लेकिन आपके आश्चर्य करने से क्या होगा? सच्चाई तो आखिर सच्चाई है। सोलह आने चौबीस कैरेट सच यही है कि हम "जगत-गुरु" थे, हैं और आगे भी रहेंगे। यकीन नहीं आता तो इसके समर्थन में नीचे कुछ दमदार तर्क दिये जा रहे हैं। उसे देखें और यकीन करने को विवश हो जायें।

सबसे पहले व्याकरण के उस नियम के बारे में बात करें जिसमें कहा गया है कि व्यक्तिवाचक संज्ञा का अनुवाद नहीं होता। सच भी है व्यक्ति, स्थान, देश आदि का नाम अन्य भाषाओं में भी ज्यों का त्यों लिखा जाता है। लेकिन भारत का अनुवाद "इन्डिया" किया जाता है। दुनिया के किसी भी देश को यह गौरव प्राप्त है क्या? शायद नहीं। यहाँ तक कि हमारे संविधान की शुरुआत ही "भारत दैट इज इन्डिया---------" से होती है। ऐसा लिखने के पीछे भी भारतीयों का अपना मनोविज्ञान है। अपने पूर्व के शासक के प्रति आज भी हमलोग काफी श्रद्धावान हैं और उनके सम्मान में कोई कमी नहीं आने देना चाहते हैं। प्रमाण स्वरूप देख लें आजादी हासिल करने के दशकों बाद भी हम "भारत" से अधिक "इन्डिया" को मान देते हैं। है एक अनोखी बात? जो हमें सबसे अलग करता है?

दयालुता हमारी पूँजी है। हम दूसरे के दुख को देखकर अपना दुख भूल जाते हैं। अब देखिये पिछले दशक में विश्व के कई भागों सहित भारत, सॅारी, इन्डिया में भी खतरनाक आतंकवादी हमले हुए। यहाँ तक कि भारतीय संसद, विधान सभाओं सहित मुम्बई का ताज होटल काण्ड भी हुआ। सारा देश दहल गया। लेकिन हमारे बुद्धजीवियों, मीडिया कर्मियों सहित देश की जनता को भी ११ सितम्बर २००१ को अमेरीकी "वर्ड ट्रेड सेंटर" पर हुए आतंकवादी हमले की तकलीफ अधिक है वनिस्पत अपने देश में हुए खतरनाक हमलों के। अपने देश पर हुए आतंकी कार्यवाही को भूलकर हमलोग "वर्ड ट्रेड सेंटर" हुए हमले की "बरसी" को हर साल श्रद्धा पूर्वक याद करते हैं। विश्व में शायद हीइस तरह का कोई दूसरा उदाहरण हो? एक बिशिष्टता और हुई हमारी "जगत-गुरु" होने की।

"अतिथि देवो भव" का सिद्धान्त हमारी संस्कृति का मूल है। विदेशों में जाने के लिए सुरक्षा जाँच के नाम पर हमारे रक्षा मंत्री तक के कपड़े क्यों उतरवा लिए जाएँ, लेकिन अमेरिकन राष्ट्रपति बुश के आगमन के पूर्व ही उनके "कुत्ते" तक के लिए भारत में "फाइव स्टार" होटल
" के कमरे आरक्षित करा दिये जाते हैं। है इस तरह की कोई मिसाल विश्व में? उसपर मान आदर इतना कि उन कुत्तों को राजघाट में राष्ट्रपिता गाँधी की समाधि तक घूमने की छूट दे दी जाती है। अभी आदरणीय "कसाब जी" की शासकीय तामीरदारी के बारे में तो हम सभी जान ही रहे हैं हमारा यही "आतिथ्य भाव" विश्व में हमें सर्वश्रेष्ठ बनाता है।

हमारी सहनशीलता के क्या कहने? हमारा पड़ोसी मुल्क, जिसे अगर भारत ठीक से देख भी दे तो मुश्किल में पड़ जाता है, हमें कई तरह से परेशान किये हुए है। हम कई बार "आर-पार की लड़ाई" की की बात भी कर चुके हैं, सीमा पर सेना भेजकर भी लड़ाई नहीं किए और तबतक नहीं करेंगे जबतक "व्हाइट हाऊस" से ग्रीन सिग्नल नहीं मिलेगा।सहनशीलता की यह पराकाष्ठा है जो अन्यत्र शायद ही देखने को मिले। अतः इस "इन्डिया" की एक और बिशेषता मानी जानी चाहिए।

संसद, शासन का बड़ा और विधान सभा छोटा मंदिर माना जाता है। इन मंदिरों के संचालन के लिए हमलोगों ने "वोट" देकर कुछ ऐसी बिशिष्ट आत्माओं को भेज दिया है जिनका हाल ही में "अपराधी" से "नेता" के रूप में "रासायनिक परिवर्तन" हुआ है। मजे की बात है कि कल तक देश की पुलिस जिन्हें गिरफ्तार करने के लिए भटक रही थी, आज वही पुलिस उन्हें "सुरक्षा" प्रदान करने को भटक रही है। इन्डिया की इस बिशेषता पर कौन मर जाय?

इसके अतिरिक्त और भी कई ऐसी बिशिष्टताओं से भरपूर इस इन्डिया के शान में और बहुत कुछ जोड़ा जा सकता है, लेकिन कथ्य के लम्बा होने के डर से विराम दे रहा हूँ। कोई शंका होने पर उसकी भी चर्चा भबिष्य में करूँगा।लेकिन आप मान लें कि आज भी इन्डिया "जगत-गुरु" है, पहले भी था और निरन्तर उन्नति को देखते हुए आगे की संभावना बरकरार है
क्योंकि कल की ही तो बात है जब हमारे शासकों ने एक संत को सबक सिखाया और हजारों सोये निहत्थे अनशनकारियों के प्रति रामलीला मैदान में पुलिसिया "दयालुता" दिखाने में जो भूमिका निभायी है वह विश्व में सबके लिए अनुकरणीय है और अन्त में-

जगत-गुरु इन्डिया है अबतक बदले चाहे रूप हजार।
ज्ञान योग सिखलाया पहले आज मंत्र है भ्रष्टाचार।।

2 comments:

  1. बहुत सटीक आलेख और चिंतन सही है ....आभार

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  2. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    चर्चा मंच

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