Saturday, June 11, 2011

विकास की गंगा

देश के किसी भाग में चुनाव की घोषणा हुई कि नहीं विभिन्न राजनैतिक दलों की प्रचार गाड़ियों के कानफोड़ूस्पीकर से एक ही आवाज आती है - हमारी पार्टी को वोट दो - हम "विकास की गंगा" बहा देंगे। यह दीगर बात है किगंगा को स्वच्छ करने की योजना ज्यों की त्यों पड़ी है लेकिन इस योजना के नाम पर कितनो की "व्यक्तिगतविकास" की गंगा निरंतर चमक रही है। झारखणड सरकार की सुल्तानगंज से "उत्तरवाहिनी गंगा" को देवघर केशिवगंगा" में नहर द्वारा मिलाने की बहुमुखी योजना बर्षों से फाइल के नीचे जस की तस पड़ी है। लेकिन पंचायतसे लेकर संसद तक किसी किसी "चुनावी" विकास की गंगा देश में हर समय बहती रहती है।


जीवनदायिनी "भागीरथी" को तो हम बचा ही नहीं पा रहे हैं और चले विकास की गंगा बहाने। बकौल राज कपूरराम की गंगा" तो कब की मैली हो चुकी है इन "पापियों" के पाप धोते धोते। उसके बाद से गंगा की गन्दगी औरबढ़ी है। किसे फिक्र है? लेकिन ये "जननायक" विकास की गंगा बहाये बिना थोड़े ही मानेंगे? क्योंकि इसी विकासकी गंगा में तो लगातार हाथ धोने की तैयारी में प्रतीक्षारत हैं ये लोग ताकि खुद का विकास लगातार होता रहे। भलेआम लोग आंसुओं की गंगा में डूब क्यों जाय।

हाँ गंगा नये नये रूपों में संशोधित और परिवर्द्धित होकर निकली है अपने देश में। भ्रष्टाचार की गंगा, घोटालों कीगंगा, नक्सलवाद की गंगा आदि आदि। मजे की बात है कि "ओरिजिनल" गंगा सिकुड़ती जा रही है और शेष मेंनिरन्तर विकास हो रहा है। शायद इसी को विकास की गंगा कहते हैं क्या?

विश्वास नहीं तो मधु कोड़ा जी के कारनामे को लीजिये। कमाल कर दिया उन्होंने। पूर्व के जितने भी घोटालेबाज हैं, सभी सकते में हैं कि "गुरू गुड़ और चेला चीनी" हो भी क्यों नहीं जिस "कोड़ा" में "मधु" लगा हो, वह कोड़ा तोआखिर अपना कमाल किसी किसी रूप में दिखायगा ही। अब तो "राजा जी" के कारनामे से मधु कोड़ा जी को भीशर्म" आती होगी क्योंकि इनके कारनामे तो गिनीज बुक में जाने योग्य है।

मधु कोड़ा जी ने कमाल दिखाया और पूछताछ के समय "महाजनो येन गतः पन्थाः" की तर्ज पर घोटालेबाजपूर्वजों" की तरह पहले तो बीमार पड़े फिर कह दिया कि सारे आरोप मेरे "स्वच्छ" छवि" को दागदार करने केलिए गढ़े जा रहे हैं। अब लीजिए - क्या कर लीजियेगा? इससे पहले किसी को कुछ हुआ क्या? फिर वही नेता, वहीमंत्री, वही सब कुछ। "राजा जी" और उनके जैसे कई "स्वनाम धन्य
" " " " " यशस्वी लोग अभी तिहाड़ जेल की शोभा में चार चाँद लगा रहे हैं हाँ एक बात तो हुई कि इसी बीच आम जनता के "आँसुओं की गंगा" में निरन्तर विस्तार हुआहै। परिणामस्वरूप अन्ना जी और रामदेव जी को बहुत पापड़ बेलने पड़ रहे हैं।

अब धीरे धीरे राज खुल रहे हैं और क्या क्या खुलेंगे पता नहीं? लेकिन आगे जो भी खुलेंगे और अधिक चौकाने वालेहोंगे। अखबार और न्यूज चैनलों को नया नया मसाला मिल रहा है और लगातार मिलते रहने की सम्भावनासुनिश्चित है और उनके "समाचारों की गंगा" मस्त और विकसित होकर बह रही है। दिन बदल बदल कर ये लोगघोटालेबाजों के पक्ष और विपक्ष में अपनी बात को सनसनीखेज ढ़ंग से रख रहे हैं, ताकि "टी० आर० पी० की गंगा" अधिक से अधिक बहे और "विज्ञापन की गंगा" सिर्फ उसी की न्यूज एजेंसी की तरफ आकर्षित हो। आखिर भाईसबको रोजगार चाहिए कि नहीं?

लोकतंत्र की परिभाषा को यदि आज संक्षिप्त रूप में कहा जाय तो उसे "जुगाड़ तंत्र" कह सकते हैं। कहना भीचाहिए। जो जितना जुगाड़ू है "विकास की गंगा" उसके तरफ उतना ही आकर्षित होती है। जुगाड़ तंत्र के लिएअनिवार्य शर्त है कि चाहे जिस तरह से हो, "धन की गंगा" बहती रहे, वो भी स्वस्थ और विकसित होकर। अब यहीहोगा, धन की गंगा बहेगी, जाँच का कोई परिणाम नहीं निकलेगा, जनता की स्मृति तो कमजोर होती ही है भूख औरबेबसी के कारण। सब इतिहास के काले पन्नों मे दफ्न।

घोटाले के जाँच हित बनते हैं आयोग।
सच होगा कब सामने वैसा कहाँ सुयोग।।

2 comments:

  1. वह अपने वादे निभा तो रहे है विकास कर रहें मगर भ्रष्टाचार , आतंकवाद की गंगा का ,सार्थक पोस्ट

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