एक दिन अचानक डोली और अर्थी की मुलाकात आमने सामने हो गयी। एक ओर से डोली में नयी दुल्हन सवार तो दूसरी ओर से किसी की अर्थी।
आमना सामना होने पर अर्थी ने डोली से पूछा - बहन क्या हाल चाल है? धीर धीरे बातचीत का क्रम आगे बढ़ा। कुछ ही देर में डोली अपने रूप-रंग पर इतराने लगी और जोश में कुछ कटु वचन बोल गयी। डोली के व्यर्थ के अभिमान से आहत अर्थी ने कहा इतना मत इतराओ बहन क्योंकि मुझ में और तुझ में कोई खास अन्तर तो है नही?
चार कंधे तुम्हें भी उठाकर चल रहे हैं और चार मुझे भी। फूल हम दोनों के आस पास बिखरे पड़े हैं। तेरे पीछे पीछे भी लोग रो रहे हैं और मेरे पीछे भी। तुम भी एक नयी दुनियाँ में जा रही हो और मैं भी। अन्तर तो बस इतना है कि तुम जहाँ जा रही हो मैं वहाँ से जा रही हूँ।
आमना सामना होने पर अर्थी ने डोली से पूछा - बहन क्या हाल चाल है? धीर धीरे बातचीत का क्रम आगे बढ़ा। कुछ ही देर में डोली अपने रूप-रंग पर इतराने लगी और जोश में कुछ कटु वचन बोल गयी। डोली के व्यर्थ के अभिमान से आहत अर्थी ने कहा इतना मत इतराओ बहन क्योंकि मुझ में और तुझ में कोई खास अन्तर तो है नही?
चार कंधे तुम्हें भी उठाकर चल रहे हैं और चार मुझे भी। फूल हम दोनों के आस पास बिखरे पड़े हैं। तेरे पीछे पीछे भी लोग रो रहे हैं और मेरे पीछे भी। तुम भी एक नयी दुनियाँ में जा रही हो और मैं भी। अन्तर तो बस इतना है कि तुम जहाँ जा रही हो मैं वहाँ से जा रही हूँ।
रोचक वृतांत , सारगर्भित रचना , आभार
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